रीवा। देश-प्रदेश सहित जिले में विजयादशमी का त्योहार बुधवार को मनाया जायेगा। मान्यता है कि विजयादशमी अर्थात दशहरा के दिन दसों दिशाएँ खुली रहती हैं। यह दिन समस्त प्रकार के शुभ कार्य करने हेतु प्रशस्त मुहूर्त माना गया है। ज्योतिष के अनुसार विजयादशमी के दिन समस्त कार्यों की सिद्धि करने वाला विजय नामक काल प्राप्त होता है। नवरात्रि में स्थापित दुर्गा का विसर्जन, अपराजिता पूजन, विजय प्रयाण, शमी पूजन तथा नवरात्रि व्रत का पारण इस पर्व के महान कर्म हैं। विजयादशमी के दिन नीलकंठ नामक पक्षी के दर्शन सौभाग्यशाली माने गए हैं। इस दिन श्रवण नक्षत्र के साथ दशमीं तिथि एवं अपरान्ह काल का संयोग विजय पर्व का प्रशस्त मुहूर्त माना जाता है। वाल्मीकि रामायण में स्पष्ट उल्लेख प्राप्त होता है कि भगवान श्रीराम का रावण से महायुद्ध नवरात्रि में ही हुआ था। प्रमाण है कि लंकाधीश रावण की मृत्यु अष्टमी-नवमी के संधिकाल में तथा अंत्येष्टि दशमी के दिन हुई थी। कालांतर में विजयादशमी पर्व मनाने का मूल उद्देश्य रावण पर राम की जीत अथवा असत्य पर सत्य की जीत बन गया। प्रतीक स्वरूप आज भी विजयादशमी के दिन रावण, मेघनाथ एवं कुंभकरण के पुतले दहन करते हुए यह पर्व मनाया जाता है।
स्वयं सिद्ध मुहूर्त है विजयादशमी
पौराणिक काल से ही विजयादशमी का पर्व सर्व वर्ग के लोगों के लिए विशेष माना गया है। इस दिन अस्त्र शास्त्रों, घोड़ों अर्थात वाहनों की विशेष पूजा की जाती है। क्षत्रियों द्वारा शस्त्र पूजन, ब्राह्मणों द्वारा सरस्वती पूजन तथा वैश्य वर्ग द्वारा बहीखाते का पूजन विजयादशमी का विशिष्ट कर्म है। ऐसे कार्य जो विजय कामना से किए जाएं, उन्हें इस दिन से प्रारंभ करना उचित होता है। विजयादशमी नूतन कार्यों के प्रारंभ, वाहन क्रय, व्यापार आरंभ एवं स्थाई महत्त्व के कार्यों को प्रारंभ करने का शुभ मुहूर्त है।
शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार इस शुभ दिन के प्रमुख कृत्य
– अपराजिता पूजन
– शमी पूजन
– सीमोल्लंघन (अपने राज्य या ग्राम की सीमा को लाँघना)
– घर को पुन: लौट आना एवं घर की नारियों द्वारा अपने समक्ष दीप घुमवाना
– नये वस्त्रों एवं आभूषणों को धारण करना,
– राजाओं के द्वारा घोड़ों, हाथियों एवं सैनिकों का नीराजन तथा परिक्रमा करना।
विजयादशमी का विजय मुहूर्त
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