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Home » RAMNAVAMI SPECIAL: रीवा के मशहूर ज्योतिर्विद राजेश साहनी ने बताया इस वर्ष कौन से हैं विशेष मूहूर्त, क्या है खास..
ज्योतिष/राशिफल

RAMNAVAMI SPECIAL: रीवा के मशहूर ज्योतिर्विद राजेश साहनी ने बताया इस वर्ष कौन से हैं विशेष मूहूर्त, क्या है खास..

Vindhya VaniBy Vindhya VaniApril 16, 2024Updated:April 16, 2024No Comments5 Mins Read
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चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नवमी पर्यंत नवरात्रों का समापन, पारण, हवन एवं कुमारी पूजन श्री राम नवमी के दिन करना प्रशस्त माना गया है। अर्थात आद्या शक्ति की आराधना राम जन्म पर्व के साथ समाहित होकर परिपूर्ण हो जाती है।शास्त्रों के अनुसार चैत्र शुक्ल पक्ष की मध्यान्ह व्यापिनी दशमी युक्त नवमी व्रत के लिए शुभ मानी गई है, तथा उस दिन यदि पुनर्वसु नक्षत्र का योग हो तो यह अतिशय पुण्यदायिनी  मानी जाती है।
 अगस्त संहिता के अनुसार चेत्र शुक्ल पक्ष नवमी के दिन पुनर्वसु नक्षत्र कर्क लग्न कर्क राशि तथा मध्यान काल में भगवान श्रीराम का प्राकाटय हुआ था। मान्यता है कि कर्क लग्न में जब सूर्य आदि ग्रह अपनी उच्च राशियों में तथा शुभ दृष्टियों के साथ विद्यमान थे तभी माता कौशल्या के गर्भ से भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था।
भगवान श्री राम की जन्म पत्रिका में सभी ग्रहों का उच्च राशियों पर होना उनके ईश्वरीय अवतार को होना दर्शाता है। इस वर्ष 17 अप्रैल, को भगवान राम के जन्मोत्सव को रामनवमी के रूप में मनाया जाएगा।इस वर्ष 16 अप्रैल को अष्टमी तिथि दोपहर 1:23 तक रहेगी इसके बाद नवमी तिथि का प्रवेश हो जाएगा जो की 17 अप्रैल को दोपहर 3:14 तक व्याप्त रहेगी । नवरात्रों में उदय तिथि की मान्यताएं होती हैं तो इस मान्यताओं के अनुसार 17 अप्रैल को नवमी तिथि का प्रभाव पूरे दिन पर्यंत बना रहेगा।इस वर्ष भगवान राम के जन्म नक्षत्र पुनर्वसु का योग 17 अप्रैल को नहीं बन रहा है, बल्कि दो दिन पूर्व ही पुनर्वसु नक्षत्र समाप्त हो जाएगा। इस वर्ष की रामनवमी का पर्व बुध के नक्षत्र अश्लेषा में मनाया जा सकेगा।
अश्लेषा नक्षत्र 17 अप्रैल को  संचरण करेगा।शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार भगवान राम का जन्म मध्यान काल में माना गया है अतः *रामनवमी के मध्यान काल का मुहूर्त 17 अप्रैल को प्रातः काल 10:45 बजे से दोपहर 1:24 बजे तक रहेगा* जिसमें विभिन्न उपचारों से भगवान राम का पूजन करते हुए उनके जन्म उत्सव के कार्यक्रम को संपन्न करना चाहिए। भगवान् राम का जन्म कर्क लग्न में हुआ था ,कई जगह कर्क लग्न में भी भगवान राम का जन्मोत्सव मनाते हैं।रामनवमी के दिन कर्क लगन दोपहर 12 29 बजे से 02 47 तक रहेगी।
ऐसे करें रामनवमी पूजन
नवमी तिथि के दिन सुबह सूर्योदय से पहले स्नान आदि करके पूजा स्थल पर प्रभु श्रीराम की मूर्ति या तस्वीर रखें. अब राम नवमी व्रत का संकल्प करें. इसके बाद भगवान श्रीराम का अक्षत, रोली, चंदन, धूप, गंध आदि से पूजन करें. इसके बाद उनको तुलसी का पत्ता और कमल का फूल अर्पित करें. फल और मिठाई का भी भोग लगाएं. आरती करें और सभी लोगों को प्रसाद का वितरण करें. इस दिन रामायण,सुंदर कांड,श्री राम बीज मंत्र और रामरक्षा स्त्रोत का भी पाठ कर सकते हैं।\रामनवमी के दिन शास्त्रों में आठ पहर उपवास करने का निर्देश दिया गया है अर्थात सूर्योदय से लेकर अगले सूर्योदय तक व्रत का पालन करना चाहिए। यह उनके लिए है जो केवल भगवान राम के निमित्त रामनवमी का व्रत रख रहे हैं, अन्यथा नवरात्र व्रत की पारणा रामनवमी के दिन सूर्यास्त के पश्चात की जानी चाहिए।
कन्या पूजन के साथ आज समाप्त होंगे नवरात्र
आज राम नवमी का दिन नवरात्र का प्रधान अंग कुमारी पूजन के लिए विशिष्ट माना गया है।कुमारी शब्द का अर्थ है- कु अर्थात कुत्सित को मारने वाली। कन्या पूजन हेतु आवश्यक है कि कन्या 2 वर्ष से कम और 13 वर्ष से अधिक आयु की ना हो। सिद्धांतत: 2 से 10 वर्ष तक की कन्यायें ग्रहण की जानी चाहिए,किन्तु इस क्रम में ना मिले तो जितने भी वर्ष उम्र की मिले उनका पूजन कर लें परंतु वे रजस्वला होने से पहले की हो। नव दुर्गा के प्रतीक रूप में नौ कन्याएं आमंत्रित करनी चाहिए।शास्त्रों में पूजित की जाने वाली कन्याओं को अलग-अलग नाम की उपाधि प्राप्त है तथा उसी नाम से पूजन किया जाना चाहिए।सर्वप्रथम स्नानादि कर, कन्याओं को आसन में बैठा कर उनके पाद प्रक्षालन करें, तत्पश्चात हाथों में कलावा बांधते हुए सिंदूर अर्पित करते हुए यथासंभव उनका श्रंगार कर दें।
सात्विक पदार्थों द्वारा कन्याओं को प्रेमपूर्वक भोजन करा दें। जब वह पूर्णरूपेण तृप्त हो जाए तो उनकी आयु के अनुसार श्रंगार सामग्री एवं दक्षिणा भेट देते हुए उनके हाथों में अक्षत दें। श्रद्धा भक्ति पूर्वक उन्हें देवी स्वरूपा मानते हुए प्रणाम करें। इसके उत्तर में कन्याएं हाथ में लिए हुए अक्षत जजमान के ऊपर अपने आशीर्वाद के रूप में फेंक दें।नौ कन्याओं के साथ एक 5-6 वर्षीय बालक को भी भोजन, पूजन, वस्त्र, दक्षिणा आदि से सम्मानित किया जाता है, जिसे भैरव का प्रतीक मानते हैं।कुमारी पूजन अर्थात कन्या भोजन नवम तिथि को करते हुएहवन संपन्न करने के पश्चात देवी को बलिदान प्रदान करते हुए सूर्यास्त के बाद नवरात्र व्रत का पारण किया जाना चाहिए। अथवा अपनी फुल परंपराओं के अनुसार नवरात्र का पारण करना चाहिए।ध्यान रखें दशमी तिथि को नवरात्र व्रत का पारण करने से स्त्री एवं कुल की हानि होती हैअतः नवरात्र व्रत का पारण नवमी तिथि को अपनी पूजा समाप्त करते हुए कन्या पूजन तथा हवन के पश्चात कर देना चाहिए।दशमी तिथि को सिर्फ विसर्जन किया जाना चाहिए!
नोट:किसी प्रकार की अन्य जानकारी व जिज्ञासा को दूर करने के लिए आप ज्योतिर्विद राजेश साहनी के मोबाईल नंबर
(9826188606)पर संपर्क कर सकते हैं।

   
     
   
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