रीवा। स्कूल शिक्षा विभाग में हुए 4.41 करोड़ के घोटाले की जांच में हर दिन नया मोड़ आ रहा है। घोटालेबाज जांच को प्रभावित करने में जुटे हैं। हद तो यह है कि कलेक्ट्रेट से जांच फाइल ही गायब कर दी गई थी। पुलिस ने तलाशनी शुरू तो फाइल और बस्ता जिला पंचायत में मिली। पुलिस ने जांच के लिए अलग टीम की डिमांड की है। ज्ञात हो कि स्कूल शिक्षा विभाग में अनुदान प्राप्त स्कूलों के शिक्षकों को अनुदान राशि के भुगतान में फर्जीवाड़ा किया था। महालेखाकार ग्वालियर की ऑडिट में आपत्ति सामने आई थी। वर्ष 2018 से 2019 के बीच में सिर्फ 70.67 लाख गबन की आपत्ति आई थी। जब तत्कालीन कलेक्टर डॉ इलैया राजा टी ने मामले की स्थानीय स्तर पर टीम बनाकर जांच कराई तो यह महाघोटाला बन कर सामने आया था। अनुदान प्राप्त स्कूलों के शिक्षकों के एरियर और वेतन घोटाले में ही 2 करोड़ 18 लाख 39 हजार 901 रुपए का गबन मिला था। इसके अलावा कई स्कूलों को बिना सामानों की सप्लाई के ही बिल बाउचर पास करा लिए। इससे करीब 2 करोड़ 23 लाख का गबन किया गया। इस फर्जीवाड़ा में करीब 24 लोगों पर एफआईआर दर्ज कराई गई थी। इसके अलावा तत्कालीन जिला शिक्षा अधिकारी आरएन पटेल ने भी सिविल लाइन थाना में कैशियर अशोक शर्मा, सहायक अध्यापक विजय तिवारी और अनुदान शाखा प्रभारी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी। तत्कालीन कलेक्टर के स्थानांतरण के बाद मामले में लीपापोती शुरू हो गई। नए कलेक्टर ने ज्वाइनिंग के बाद अनुदान घोटाले की फाइल और बस्ता जांच के लिए कलेक्टे्रट मंगाया था। यहां से फाइल और बस्ता ही गायब हो गया। कलेक्टर ने जब जांच की जिम्मेदारी पुलिस को दी तो बस्ते की तलाश शुरू हुई। कलेक्ट्रेट में जांच फाइल और बस्ता ही नहंी मिला। पहले डीपीसी कार्यालय भेजे जाने की बात आई। पुलिस ने वहां जांच कराया तो फाइल नहीं मिली। इसके बाद पुलिस ने इस मामले से जुड़े कर्मचारियों पर दबाव बनाना शुरू किया। फाइल और बस्ता के गायब होने की आशंका जताई गई। हालांकि पुलिस के दबाव के बाद बस्ता जिला पंचायत कार्यालय में मिल गई। पुलिस मामले की जांच कर रही है।
ईओडब्लू को देने की थी तैयारी
सूत्रों की मानें तो अनुदान घोटाला और सामग्री फर्जीवाड़ा की जांच की जिम्मेदारी कलेक्टर ईओडब्लू को देने वाले थे। हालांकि बाद में पुलिस को जिम्मेदारी सौंपी गई है। अब मामले की जांच सिविल लाइन पुलिस कर रही है। फिलहाल जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय से मामले में जुड़े सभी दस्तावेजों को तबल करने पत्राचार किया गया है।
जांच के लिए टीम की डिमांड
सूत्रों की मानें तो सिविल लाइन पुलिस ने अनुदान और सामग्री घोटाले की जांच के लिए एक अलग टीम की डिमांड की है। इसमें एक राजपत्रित अधिकारी, एक लिपिक, एक कम्प्यूटर आपरेटर सहित अलग सेटअप की डिमांड की गई है। यह पूरी टीम अनुदान घोटाले के रिकार्ड खंगालने से लेकर अन्य जांच करेगी।
अनुदान और सामग्री घोटाला में लीपापोती की तैयारी तेजी से चल रही है। हद तो यह है कि जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय में वह सारे काम मामले में फंसे कैशियर को दे दिए गए हैं जो सबसे महत्वपूर्ण विभाग हैं। इतना ही नहीं जिन लिपिकों के पास जांच के रिकार्ड थे। उन्हें भी बारी बारी से निलंबित करा दिया गया। जिला शिक्षा अधिकारी के प्रस्ताव पर पहले मुख्य लिपिक गजाधर वर्मा निलंबित हुए। और अब ऑडिटर मुन्नालाल वर्मा पर गाज गिर गई। ऑडीटर को वर्ष 2018 से 28 नवंबर 2019 से मार्च 2021 तक कैश बुक प्रस्तुत नहीं किए जाने के आधार पर निलंबित किया गया है। जिस कैश सूची को लेकर निलंबित किया गया है। वह ऑडीटर को हैंडओव्हर ही नहीं किया गया। निलंबित ऑडीटर मुन्नालाल वर्मा का कहना है कि जबरन निलंबित किया गया है। वह प्रभार सूची, आदेय प्रमाण पत्र भी है फिर भी निलबित कर दिया गया है।
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