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रीवा। अपने कार्यस्थल में एक अलग पहचान बनाना आसान नहीं होता है। इसके लिए अपने कर्म को काफी ईमानदारी और लगन से करना पड़ता है। ये दोनों बातें मेडिकल कॉलेज के एनाटॉमी विभाग में पदस्थ लैब असिस्टेंट मोहनलाल पर आसानी से देखी जा सकती है। कहते हैं शासकीय सेवा में कोई काम नहीं करना चाहता लेकिन मोहनलाल अपने कार्य के साथ-साथ वह कार्य भी कर रहे है शायद जिसके लिए उनको मजबूर नहीं किया जा सकता। दरअसल मोहनलाल द्वारा देहदान में मिली देह में छात्रों के पढ़ाई के बाद अनुपयोगी हो चुके शरीर हो दफनाने की जगह उनकी बरीकी से सफाई कर उनकी अस्थियों को फिर से पढ़ाई के योग्य बना रहे हैं। जानकारों की माने तो यह काम काफी चुनौती भरा है लेकिन इसे मोहनलाल काफी सरलता के साथ अपने व्यस्ततम समय से समय निकाल कर छात्र हित के लिए कर रहे हैं।
महीनों करनी पड़ती है मसक्कत
बता दें कि बीते सात वर्षो से मोहनलाल द्वारा यह कार्य शुरु किया गया है। बताया गया कि एक छोटी सी अस्थि को साफ करने के लिए महीनों का समय लगता है, क्योंकि इसे काफी बरीकी के साथ साफ किया जाता है ताकि शरीर से निकलने वाली अस्थियों का अपयोग लंबे समय तक किया जा सके।
कैमिकल से हुआ प्रयोग
बता दें कि मोहनलाल के इस कार्य को शुरु करने से पहले मेडिकल कॉलेज प्रबंधन द्वारा पहले इस काम को कैमिकलो के माध्यम से करने का प्रयास किया गया लेकिन अस्थियों में कैमिकल के चलते दुष्प्रभाव हो रहे थे जिसके बाद मोहनलाल द्वारा अस्थियों को हाथों से साफ किया जाने लगा, इस कार्य के लिए वह छात्रों की भी मदद लेते हैं और उन्हें इसकी जानकारी देते हैं, ताकि भविष्य में छात्र भी इस संबंध में संदेश अपने कार्यस्थल पर दे सके और छात्रों की पढ़ाई के लिए अधिक से अधिक देह का उपयोग हो सके।
वर्षो पुरानी अस्थियां संरक्षित
जानकरी के मुताबिक मेडिकल कॉलेज में वर्षो पुरानी अस्थियां संरक्षित हैं जिसे इसी प्रकार से कड़ी मेहनत के साथ सफाई कर रंगरोगन कर रखा गया है, इन अस्थियों का उपयोग भी छात्र अध्ययन के रूप में करते हैं।
देहदान की पूरी उपयोगिता
मेडिकल कॉलेज में छात्रों की पढ़ाई के लिए देह दान में मिलती है, इन देह से ही छात्र पहले प्रैक्टिकल करते हैं, जानकारों की माने तो जब देह में प्रैक्टिकल हो जाता है तो चीर-फाड़ के बाद वह दोबारा अध्ययन के लिए लायक नहीं रहती लेकिन मोहलनाल सहित उनके सहयोगियों द्वारा की जा रही अस्थियों की सफाई के बाद अस्थियां अनुपयोगी होने के बाद भी उपयोगी हो जाती हैं और देह का लंबे समय तक उपयोग छात्रोंं के अध्ययन में होता है, इससे देहदान करने वाले की मंशा भी पूरी होती है, मोहनलाल का कहना है कि उनका एक मात्र उद्देश्य यही है कि अधिक से अधिक देह का उपयोग हो सके और छात्र इसमें अध्ययन कर दूसरो का जीवन बचाए।
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