रीवा। नगर निगम में महापौर और अध्यक्ष के बीच पॉवर की जंग जारी है। पहले महापौर ने निगमायुक्त को पत्र लिख अध्यक्ष के पॉवर की जानकारी दी और अधिकारी-कर्मचारियों को निर्देश दिए कि वह निगम अध्यक्ष की बैठकों में जाकर समय जाया न करें, क्योंकि अध्यक्ष को किसी प्रकार की बैठक लेने का कोई अधिकार नहीं है। इस पत्र के सामने आते ही भाजपाइयों में हड़कंप मचा हुआ था और अध्यक्ष द्वारा गलत बैठक ली गई इस बात को लेकर चर्र्चाएं शुरु हो गई थीं। वहीं अब निगम अध्यक्ष व्यंकटेश पांडेय ने भी निगमायुक्त को पत्र लिखा है। हालांकि इस पत्र में व्यंकटेश पांडेय ने निगमायुक्त को नगर निगम अधिनियम में महापौर की क्या शक्तियां हैं, इस बात की जानकारी ही दी है। लेकिन यह नहीं बताया कि उनको अधिकार बैठक लेने का है या नहीं और यदि है तो किस नियम के तहत है। जानकारों की मानें तो चूंकि निगम अध्यक्ष ने इस पत्र में संदर्भ महापौर अजय मिश्रा बाबा के पत्र का दिया है, इसलिए उनको उक्त आशय की जानकारी देनी चाहिए थी। क्योंकि महापौर नगर निगम का चेयर पर्सन है और उसके पास सभी तरह के अधिकार होते हैं, लेकिन निगम अध्यक्ष को कौन से अधिकार हैं यह उनको बताना चाहिए था।
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अध्यक्ष ने क्या लिखा पत्र में
निगम अध्यक्ष व्यंकटेश पांडेय ने लिखा है कि जोन क्रमांक 1 के अधिकारियों की बैठक लिए जाने तथा कर्मचारियों एवं अधिकारियों को उपस्थित रहने के निर्देश देने को विधि विरुद्ध एवं अधिकारिता विहीन कार्यवाही बताया गया है। इस हेतु माननीय महापौर जी के द्वारा म.प्र. नगर पालिक निगम अधिनियम की धारा 1956 एवं मध्य प्रदेश नगर पालिका (कामकाज के संचालन की प्रक्रिया) नियम 2005 एवं मध्य प्रदेश नगर पालिक(मेयर-इन-काउंसिल के कामकाज के संचालन तथा प्राधिकारियों के शक्तियों एवं कर्तव्य) नियम 1998 का लेख करते हुए कार्रवाई को अधिकारिता विहीन एवं विधि विरुद्ध घोषित करते हुए यह निर्धारित किया गया है, अध्यक्ष को मात्र अपने कार्यालय के अधिकारियों एवं सेवकों पर नियंत्रण होगा। इसके अतिरिक्त नगर निगम के किसी कर्मचारी/अधिकारी पर नियंत्रण नहीं होगा। इसके साथ ही माननीय महापौर जी ने अपनी इच्छा जाहिर करते हुए यह व्यक्त किया कि जो शपथ उनके द्वारा दिनांक 30/07/2022 को पद्मधर पार्क रीवा में ली गई है उसके अनुसार मध्य प्रदेश नगर पालिक निगम अधिनियम मध्यप्रदेश मेयर-इन-काउंसिल के कामकाज के संचालन का नियम 1998 एवं नगरपालिका के कामकाज संचालन नियम 2005 के अनुसार समस्त कर्मचारी एवं अधिकारी अपने कार्य करें तथा भ्रम की स्थिति निर्मित नहीं हो। अंत में माननीय महापौर जी के द्वारा निर्देशित किया गया कि अध्यक्ष के द्वारा आहूत किसी भी समीक्षा बैठक में अधिकारी एवं कर्मचारी सम्मिलित ना हों तथा निर्देशों का पालन ना करें। माननीय महापौर जी का यह राजनैतिक पत्र पढ़कर मन में हर्ष एवं खेद की अनुभूति साथ-साथ हुई। पत्र पढऩे के पश्चात मुझे इस बात का हर्ष हुआ कि माननीय महापौर जी मध्य प्रदेश नगर पालिक निगम अधिनियम 1956 एवं उसके अंतर्गत बनाए गए नियमों का उल्लेख करते हुए विधि सम्यक ज्ञान रखते हैं, जिससे प्रतीत होता है कि उन्हें अपने राजनीतिक दर्शन के अतिरिक्त नगर निगम अधिनियम 1956 एवं उसके अंतर्गत बनाए गए नियमों के पालन की जानकारी है। परंतु खेद इस विषय का है कि जिस प्रकार पत्र में लेख करते हुए उन्होंने दिनांक 30/07/2022 की शपथ को प्रमाणित करने हेतु उक्त पत्र लिखकर कार्रवाई विधि विरुद्ध एवं अधिकारिता विहीन बताया है तथा निर्देशित किया है कि कर्मचारी/अधिकारी अध्यक्ष के द्वारा आहूत बैठक में भाग ना लें, इस प्रकार का निर्देश दिया जाना स्वयं विधि विरुद्ध है। यह विधि का सुस्थापित सिद्धांत है कि किसी भी कार्यवाही को जो विधिक प्राधिकारी के द्वारा की गई है, उसे विधि विरुद्ध कहने का अधिकार मात्र सक्षम प्राधिकारी को होता है। उन्होंने नियमों का हवाला भी पत्र में दिया है।
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पत्र को बताया विधि विरूद्ध
पत्र में अध्यक्ष ने लिखा है कि अधिनियम की धारा 37 का संबंध मेयर-इन-काउंसिल के गठन से है, जबकि धारा 73 नगर निगम के द्वारा संविदा किए जाने से संबंधित हैं। जबकि अधिनियम की धारा 433 राज्य शासन को नियम बनाने की शक्ति है। अत: नियमों के अंतर्गत महापौर को अधिकारिता नहीं है कि नगर निगम के अधिकारियों एवं कर्मचारियों पर प्रशासनिक नियंत्रण रखें तथा अध्यक्ष के द्वारा आहूत बैठक एवं निर्देशों को अधिकारिताविहीन घोषित करें। इसी प्रकार माननीय महापौर जी द्वारा नगरपालिका कामकाज (संचालन) नियम 2005 के अनुसार कार्यवाही करने हेतु लेख किया गया है कि कामकाज के संचालन नियम 2005 की प्रति सुलभ संदर्भ हेतु प्रस्तुत है। उक्त नियमों से स्पष्ट है कि नगरपालिका के विधिक कार्यवाही किए जाने से संबंधित अध्यक्ष की भूमिका विशेष रूप से उल्लेखनीय है तथा उक्त नियमों में ऐसा कोई उल्लेख नहीं है कि महापौर अध्यक्ष द्वारा दिए गए निर्देशों को अपास्त कर सकते हैं अथवा नगर निगम के अधिकारियों एवं कर्मचारियों में प्रशासनिक नियंत्रण रख सकते हैं। इसके विपरीत माननीय महापौर को अधिनियम के द्वारा प्रदत्त शक्तियों एवं कर्तव्यों में धारा 25 में विशेष रुप से उल्लेखनीय है कि महापौर राज्य शासन अथवा निगम के आदेशों के विपरीत कोई भी कार्य नहीं करेगा। यहां पर यह स्पष्ट किया जाता है कि नगर निगम का गठन राज्य सरकार की योजनाओं को सुचारु रुप से लागू किए जाने के लिए किया जाता है, ना की किसी भी नगर निगम के पदाधिकारी की व्यक्तिगत स्थान पर शपथ ग्रहण करने की तथा स्वयं की विधि विरुद्ध राजनैतिक महत्वाकांक्षा/विचारधारा पूर्ण करने हेतु किया जाता है। इसी कारण नगर निगम अधिनियम की धारा 417 से 433 के बीच राज्य शासन नगर निगम में नियंत्रण अपने अंतर्गत अधिकारिता सुरक्षित रखी, ताकि कोई भी पदाधिकारी द्वारा अथवा नगर निगम राज्य शासन के द्वारा बनाए गए नियमों का पालन करें तथा नियम विरुद्ध कार्य न करें। अत: माननीय महापौर जी द्वारा जारी विषयांकित पत्र खेदजनक, विधि विरुद्ध, मप्र नगर पालिक निगम अधिनियम 1956 के एवं उसके अंतर्गत बनाए गए नियमों के विपरीत अधिकारिताविहीन, राज्य शासन के प्रसारित निर्देशों के विपरीत एवं राजनीति से प्रेरित है। तदनुसार संज्ञान लें।
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जानकार महापौर को बता रहे सही
नगर निगम में चल रहे पत्रवार को लेकर जानकारों ने हैरानी व्यक्त की है। उनकी मानें तो महापौर के पास तो सभी प्रकार की शक्तियां हैं लेकिन अध्यक्ष के पास सीमित अधिकार ही हैं और वह अधिकारी-कर्मचारियों की मीटिंग लेने के अधिकारी नहीं हैं। पूर्व में भी किसी अध्यक्ष ने बैठक नहीं ली है। पूर्व निगमायुक्त एसपीएस तिवारी ने कहा कि महापौर के पास सभी प्रकार के पॉवर होते हैं। अधिनियम की धारा 9 में नगर पालिक निगम की संरचना में स्पष्ट उल्लेख है कि नगर पालिक वार्डों से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा निर्वाचित महापौर अर्थात सभापति (चेयनपर्सन) होता है। नगर पालिक प्राधिकारी, जिन पर इस अधिनियम के आदेशों को कार्याङ्क्षवत करने का भार आरोपित किया गया है उसमें निगम, मेयन इन काउंसिल, महापौर व आयुक्त को अधिकार दिए गए है। वहीं पूर्व उपायुक्त नगर निगम अरूण मिश्रा ने कहा कि महापौर के पास सभी प्रकार की वित्तीय शक्तियां होती हैं। उनके पास प्रथम व द्वितीय श्रेणी के कर्मचारी को दंडित करने सहित अन्य अधिकार होते हैं, लेकिन अध्यक्ष के पास ऐसे कोई अधिकार नहीं हैं।
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वर्जन
माननीय अध्यक्ष का पत्र मुझे भी प्राप्त हुआ है, इस पत्र में उन्होंने महापौर के ही अधिकारों की जानकारी दी है। लेकिन अपने अधिकार की जानकारी नहीं दी है। महापौर के अधिकार सार्वजनिक हैं, सभी को उक्त आशय की जानकारी है। उन्हें अपने अधिकारों की जानकारी भी देनी चाहिए।
अजय मिश्रा बाबा, महापौर ननि
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माननीय महापौर के पत्र के संदर्भ में निगमायुक्त को पत्र लिखा है। उनका पत्र खेदजनक, विधि विरूद्ध, मप्र नगर पालिक अधिनियम 1956 के एवं उसके अंतर्गत बनाए गए नियमों के विपरीत अधिकारिताविहीन, राज्य शासन के प्रसारित निर्देशों के विपरीत एवं राजनीति से प्रेरित है। निगम आयुक्त इसमें संज्ञान लें।
व्यंकटेश पांडेय, निगम अध्यक्ष
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