सतना। नगर निगम में मनमानी हावी है, हालात यह हैं कि अब जानकारी देने से बचने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। नगर निगम में ऐसा ही एक अजीबो-गरीब मामला प्रकाश में आया है जिसमें वकील को नागरिक ही मानने से इंकार निगम अधिकारियों ने कर दिया। हालांकि इस मनमानी की जानकारी सूचना आयुक्त राहुल सिंह तक पहुंच चुकी है और उन्होंने कहा भी है कि आवेदक यदि शिकायत करते है तो इस पर सख्त कार्यवाही संबंधित अधिकारी-कर्मचारी पर होगी। अब इसके बाद अधिकारियों के बीच में ही हड़कंप मचा हुआ। जानकरी के मुताबिक आवेदक को जवाब में यह कह दिया गया कि नागरिक की परिभाषा में वकील शामिल नहीं है। लिहाजा उसे जानकारी नहीं दी जा सकती है।
क्या है मामला…
जानकारी के मुताबिक आवेदक अधिवक्ता बृजेश कुमार पाठक ने लोक सूचना अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 6(1) के तहत नगर निगम से जानकारी मांगी थी, लेकिन जवाब तो मिला नहीं निगम के प्रभारी राजस्व निरीक्षक अजीबो-गरीब तर्क दे डाला, उनके तर्क के अनुसार वकील नागरिक ही नहीं माने गए हैं। कहा है कि सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 में सूचना नागरिक को प्राप्त करने का अधिकार प्रदान किया गया है, कोई भी व्यक्ति इसका लाभ ले सकता है। इसी प्रकार कोई संगठन, संघ, प्रतिष्ठान, एसोसिएशन, एडवोकेट नागरिक शब्द की परिभाषा में नहीं आता है। अधिवक्ता जो कि काउंसिल में पंजीकृत होने पर विधिक व्यवसाय करता है तथा अपने मुव्वकिल के पक्ष में फीस प्राप्त कर न्यायालय में विधिक पैरवी करता है। इसलिए धारा 11 में व्यक्ति की सूचना के अनुक्रम में सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत धारा 24 के अंतर्गत 3 जो 06 उप कंडिकाएं है के अधिवक्ता के बिन्दु क्रमांक 2 के अनुरूप नियमानुसार आवेदक को जानकारी प्रदान किये जाने का प्रावधान नहीं है।
यह चाही गई थी जानकारी
जानकारी के मुताबिक अधिवक्ता बृजेश कुमार पाठक ने आरटीआई में कार्यरत मस्टर श्रमिकों की जानकारी मांगी गई थी। जानकारी चाही गई थी कि नगर निगम की किन-किन शाखाओं में कितने मस्टर कर्मी रखे गये हैं? कुल रखे गये मस्टर कर्मियों में कितने कुशल और कितने अर्ध कुशल हैं? 2012 से 2021 तक इन मस्टर कर्मियों को कुल कितना भुगतान किया जा चुका है? नगर निगम द्वारा दिए गए जवाब को लेकर हैरानी व्यक्त की जा रही है।



