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Home » जिले की महिला नेत्रियों पर दलों को भरोसा नहीं ?,पिछले दो दशक से किसी बड़े दल ने नहीं उतारा महिला कैंडिडेट…
राजनीति

जिले की महिला नेत्रियों पर दलों को भरोसा नहीं ?,पिछले दो दशक से किसी बड़े दल ने नहीं उतारा महिला कैंडिडेट…

Vindhya VaniBy Vindhya VaniMarch 28, 2024Updated:March 28, 2024No Comments5 Mins Read
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रीवा। महिलाओं के सशक्तीकरण की बात तो सभी दलों द्वारा की जाती है लेकिन जब राजनीति में सशक्तीकरण की बात आती तो सभी हाथ समेट लेते हैं। ऐसे समय में जब महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने का बिल भी संसद में पास हो चुका है, तब भी उन्हें उनका अधिकार देने में कोताही की जा रही है। हम रीवा संसदीय क्षेत्र के संदर्भ में बात करें तो इस संसदीय क्षेत्र में अब तक 17 चुनाव हुए हैं। अब तक हुए इन चुनावों में प्रमुख दल भाजपा, कांग्रेस व बसपा ने केवल एक-एक बार ही महिला कंडीडेटों पर भरोसा किया है। पिछले दो दशक से तो किसी भी दल ने महिला कंडीडेटों को मैदान में नहीं उतारा।
देखा यह जा रहा है कि लोकसभा क्षेत्र रीवा से महिला नेत्रियों को उतारने से कांग्रेस,भाजपा, बसपा तीनों प्रमुख दल परहेज करते हैं। अब तक में एक महिला कंडीडेट महारानी प्रवीण कुमारी सिंह को पहले कांग्रेस ने आजमाया फिर भाजपा ने। यह अलग बात है कि महिला प्रत्याशी उतार कर दोनों दलों को घाटा उठाना पड़ा था, जबकि बसपा ने पहली बार विमला सोंधिया को मैदान में उतारा था। दो दशक में हुए चुनावों में किसी भी दल ने महिला कंडीडेटों पर भरोसा नहीं जताया।

   

 

 

 

ब्राह्मण व पटेल वर्ग के कंडीडेटों तक सीमित दल
पिछले तीन दशक में हुए चुनावों में कांगे्रस, भाजपा व बसपा द्वारा उतारे गए प्रत्याशियों पर गौर करें तो उक्त तीनों प्रमुख दलों ने क्षत्रिय, वैश्य व अन्य जाति वर्ग के कंडीडेटों से भी परहेज किया है। अब तक भाजपा ने एक बार महारानी प्रवीण कुमारी के रूप में क्षत्रिय कंडीडेट उतारा। कहने के लिए भाजपा वैश्यों की पार्टी मानी जाती है लेकिन अब तक किसी वैश्य नेता पर विश्वास नहीं किया। कांग्रेस ने पूर्व में क्षत्रिय कंडीडेट के रूप में दो बार महाराजा मार्तंड सिंह व एक बार महारानी प्रवीण कुमारी को उतारा था। 1998 में वैश्य कंडीडेट उतारा। इसके बाद केवल एक घर तक ही सीमित रह गई। बसपा की बात ही अलग है। बसपा ने एक बार कहार कंडीडेट उतारा, उसके अलावा सभी चुनावों में सिर्फ पटेल नेताओं पर ही विश्वास किया है। अतीत के आकड़ों पर दृष्टिपात करें तो राष्ट्रीय दल जिले के केवल दो जातियों, ब्राह्मण व पटेल (कुर्मी) पर दांव लगाना चाहते हैं। ब्राह्मण को बहुसंख्यक व कुर्मी को जातीय समर्पण के कारण सभी दल महत्व देते हैं। वैसे तो संख्या बल में दलित मतदाता जिले में दूसरे स्थान पर हैं लेकिन किसी दल ने इस वर्ग को वोटों की खेती मानने के अलावा कोई महत्व नहीं दिया। वैसे तो संख्याबल में क्षत्रिय व वैश्य, पटेलों से थोड़ा ही कम हैं लेकिन वोट में भूमिका कम नहीं है। यह वर्ग जिधर जाता है, अपने साथ काफी वोटरों को साथ लेकर जाता है। फिर भी राजनैतिक दल दोनों जाति वर्ग को हाशिये में रखता है।

 

 

 

कांग्रेस ने 1980 में क्षत्रिय व 1998 में उतारा था वैश्य कैंडिडेट
कांग्रेस ने पहली बार क्षत्रिय कंडीडेट के रूप में महाराजा मार्तण्ड सिंह को 1980 व 84 में रीवा लोकसभा क्षेत्र से उतारा था और वह जीते भी। यहां कांग्रेस को महाराज मार्तण्ड ङ्क्षसह को उतारना मजबूरी थी। क्योंकि 1971 से महाराजा मार्तण्ड सिंह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में थे और चुनाव भी जीत रहे थे। कांग्रेस प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहते थे। इसलिए उन्हें दबाव डालकर कांग्रेस का सिंबल दिया गया था। महाराजा मार्तंड सिंह के निधन के बाद 1989 में कांग्रेस महिला प्रत्याशी के रूप में महारानी प्रवीण कुमारी सिंह को मैदान में उतारा लेकिन वह भाजपा-जनता दल की आंधी में पराजित हो गईं। कांग्रेस ने फिर श्रीनिवास तिवारी खानदान की ओर रुख किया। 1991 के चुनाव श्रीनिवास तिवारी व 1993 के चुनाव में सुंदरलाल तिवारी को मैदान में उतारा। हालांकि दोनों चुनाव बचाने में असफल रहे। कांग्रेस ने केवल एक बार 1998 के सेमी चुनाव में वैश्य समाज से मदन मोहन गुप्त को उतारा। इसके बाद से लगातार ब्राम्हण कंडीडेट सुंदरलाल तिवारी को ही उतारा गया। यह अलग बात है कि 1999 के अलावा सुंदरलाल तिवारी को पांच चुनावों में जीत नहीं मिली। बता दें कि 1998 में वैश्य कंडीडेट रहे मदन मोहन गुप्त को 21.49 प्रतिशत यानी एक लाख 61 हजार 922 मत मिले थे। कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में महारानी प्रवीण कुमारी सिंह को 26.87 प्रतिशत यानी एक लाख 40 हजार 664 मत मिले थे। जबकि भाजपा प्रत्याशी के रूप में महारानी प्रवीण कुमारी सिंह को पड़े मत का 24.81 प्रतिशत यानी 145997 मत मिले थे।

 

 

 

 

बसपा 1989 के बाद अस्तित्व में आई। रीवा संसदीय क्षेत्र से पहली बार बसपा ने कहार जाति से विमला देवी सोंधिया को अपना प्रत्याशी उतारा था। इस बाद हर चुनाव में बसपा ने केवल पटेल प्रत्याशी ही मैदान में उतारा है। हालांकि पटेल प्रत्याशी के रूप में ही बसपा को पहली बार संसद तक पहुंचने का मौका रीवा से ही मिला था। बसपा अब तक तीन बार चुनाव जीत चुकी है। इनमें 1991, 1996 व 2009 के चुनाव में बसपा को जीत मिल चुकी है। भाजपा ने ब्राह्मण प्रत्याशी मैदान में उतार दिया है, देखना यह है कि इस चुनाव में कांग्रेस व बसपा किस जाति के कंडीडेट मैदान में उतारती है।

 

 

 

जाति के अनुसार उतारे गए प्रत्याशी
दल       चुनाव     लड़े   पुरुष    महिला   ब्राह्मण   क्षत्रिय   कुर्मी   वैश्य
कांग्रेस 16 15 01 13 02 00 01
भाजपा 06 00 01 05 01 00 00
बसपा 06 05 01 कहार 00 00 05 00
नोट: अन्य जातियों को अभी तक तीन में से किसी दल ने नहीं उतारा

     
   
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