रीवा। जिला अस्पताल के सामने वर्षों से अपना व्यापार करने वाले गरीब व्यवसायी अब भी शासकीय कार्यालयों के चक्कर काट रहे हैं। उनके हक पर रसूखदारों ने डाका डाल रखा है। इन्होंने अपनी राजनैतिक पकड़ के चलते गरीबों का हक छीन लिया है। यह खुलासा स्वास्थ्य विभाग की आरटीआई रिपोर्ट में हुआ है। गरीब व्यवसायी को दुकान न मिलने के बाद जब उसने आरटीआई में आवंटन सूची निकलवाई तो कई ऐसे नाम सामने आए जिनका दूर-दूर तक इसी सूची से कोई नाता ही नहीं होना चाहिए था। मामले की शिकायत आवेदिका ने संभागायुक्त सहित कलेक्टर को शिकायत की जा चुकी है। शिकायत में आवेदिका सुमित्रा गुप्ता ने बताया है कि वह अपना व्यापार जिला अस्पताल के सामने वर्ष 1995 से कर रही थी, बीच में विकास की बात कहते हुए उनकी दुकानों को तोड़ दिया गया और कहा गया कि जिला अस्पताल के सामने बनने वाली दुकानों में दुकान दी जाएगी। लेकिन जब दुकानों का निर्माण कर लिया गया तो उन्हें दुकान नहीं आवंटित की गई। बताया कि पिछले कई वर्ष से वह शासकीय कार्यालयों के चक्कर काट रही है लेकिन अब तक उन्हें दुकान नहीं दी गई है जबकि उनके परिवार के पोषण के लिए यह दुकान ही एक मात्र सहारा थी, ऐसे में उन्हें कई तरह की तकलीफों का सामना करना पड़ रहा है।
समिति में हुआ बंदरबांट
सुमित्रा गुप्ता ने शिकायत में बताया है कि गरीब व्यवसायियों की जगह रसूखदारों को आवंटन समिति ने मनमानी आवंटन किया है। उन्होंने कहा कि जब उन्होंने आवंटन सूची आरटीआई में ली तब इस बात की जानकारी हुई। गरीब व्यवसायियों की जगह पूर्व मंत्री राजेन्द्र शुक्ला के पीएम सत्यनारायण पांडेय की पत्नी ऊषा पांडेय, पूर्व सीएमएचओ वीएन शर्मा की बहू किरण शर्मा, गर्वमेंट मेडिसिन सप्लायर शशि मिश्रा की पत्नी ज्योति मिश्रा सहित अश्वनी मिश्रा, श्रवण चतुर्वेदी व आरबी पांडेय जैसे रसूखदारों को दुकानों का आवंटन कर दिया गया। जबकि पात्र हितग्राही अब भी दुकान के लिए चक्कर काट रहे हैं, जबकि उनकी सूची दुकानें गिराने के पूर्व ही बना ली गई थीं।
शिकायतकर्ता ने बताया है कि दुकानों के आवंटन के लिए एक समिति बनाई गई थी। 21 जनवरी 2014 को हुए आवंटन में कलेक्टर रीवा ने आवंटन के लिए एसडीएम हूजूर रीवा, डॉ. एसके त्रिपाठी तत्कालीन सिविलि सर्जन, डॉ. सीपी द्विवेदी शिशु रोग विशेषज्ञ, डॉ. संजीव शुक्ला अस्ति रोग विशेषज्ञ सहित तत्कालीन सहायक यंत्री लोक निर्माण विभाग विजय शुक्ला को जिम्मेदारी दी थी लेकिन समिति में शामिल पदाधिकारियों ने नियमों को ताक में रखा और दुकानों का आवंटन मनमानी रसूखदारों को करा दिया गया। इन रसूखदारों द्वारा खुद व्यवसाय भी नहीं किया जा रहा है, किराए से दुकानें दी गई हैं। इसकी जांच कराकर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए।
कई आवेदन, कार्यवाही शून्य
शिकायतकर्ता सुमित्रा गुप्ता ने बताया कि दुकान आवंटन नहीं होने के बाद उनके द्वारा अब तक करीब एक दर्जन से अधिक आवेदन प्रशासनिक अधिकारियों को दिए जा चुके है लेकिन अब तक उनके आवेदन पर सुनवाई नहीं हुई न ही शासकीय अधिकारियों द्वारा पदों का दुरुपयोग कर किए गए इस भ्रष्टाचार पर किसी प्रकार की जांच की गई। उन्होंने कहा कि यदि अब प्राशसनिक अधिकारी उनकी नहीं सुनते है तो वह आमरण अनशन पर बैठेंगी। क्योंकि किसी प्रकार का व्यवसाय उनके पास नहीं होने से परिवार भूखे मरने की कगार पर हैं।
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