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Home » Sidhi News:1 करोड़ हिंदू परिवार हैं जिले में निवासरत…
भोपाल

Sidhi News:1 करोड़ हिंदू परिवार हैं जिले में निवासरत…

Vindhya VaniBy Vindhya VaniAugust 10, 2023Updated:March 23, 2024No Comments5 Mins Read
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सीधी.जिले की जनसंख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। वर्ष 2023 की जनसंख्या के अनुसार सीधी जिले की कुल आबादी 1 करोड़ 31 लाख 9079 पहुंच चुकी है। इसमें 1 करोड़ 26 लाख 1159 ङ्क्षहदू हैं। वहीं मुसलमानों की जनसंख्या 40 हजार 284, ईसाई 598, सिक्ख 150, बौद्ध 108, जैन 109, अघाषित 1977 एवं अन्य 14 हजार 696 हैं। जिले की जनसंख्या जिस रफ्तार से बढ़ रही है उसी के अनुपात में गरीबी भी बढ़ रही है। जानकारों के अनुसार जिले के 85 प्रतिशत लोग गरीब एवं अति गरीब हैं। जिले की जनसंख्या बढऩे के साथ ही संसाधनों का अभाव भी बन रहा है। खासतौर से भूमि को लेकर सबसे ज्यादा असमानता निर्मित हो गई है। एक परिवार में जहां पहले जितने सदस्य रहते थे उसके अनुपात में सदस्यों की संख्या बढ़ रही है। जबकि भूमि का रकवा पुराना ही है। इस वजह से खेती-किसानी का कार्य भी अब लाभ का धंधा काफी परिवारों के लिए नहीं रह गया है। जिले में गरीबी का प्रतिशत बढऩे के पीछे मुख्य वजह यह भी है कि यहां रोजगार के अवसर न के बराबर हैं। काम धंधा न मिलने के कारण लोगों को आजीविका की तलाश में अन्य राज्यों की ओर पलायन करना पड़ रहा है।

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nजिले में रोजगार के अवसर सहजता से उपलब्ध हों इसके लिए जन प्रतिनिधियों द्वारा कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। सरकार के समक्ष जन प्रतिनिधियों द्वारा कभी भी जिले में बड़े उद्योग-धंधों की स्थापना को लेकर मांग बुलंद नहीं की गई है। रोजगार-धंधा न मिलने के कारण पढ़े-लिखे युवक भी अपनी प्रतिभा नहीं दिखा पा रहे हैं। बड़ी-बड़ी डिग्री लेकर युवा घर में खाली बैैठने के लिए मजबूर हैं। शासन द्वारा भी सीधी जिले में बड़े उद्योग, धंधों की स्थापना को लेकर पूरी तरह से निष्क्रिय है। सीधी जिला खनिज संसाधनों के मामले मेें काफी संपन्न है। यहां खनिज आधारित बड़े उद्योग, धंधे लग सकते हैं। लेकिन इसके लिए उच्च स्तरीय प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। यदि जिले की जनसंख्या इसी रफ्तार से बढ़ती रही तो एक दशक बाद इसके काफी विस्फोटक परिणाम सामने आ सकते हैं। रोजगार, धंधों के लिए जो भटकाव बना हुआ है यदि उसके लिए भी गंभीरता के साथ जन प्रतिनिधियों द्वारा प्रयास नहीं किए गए तो निश्चित ही आने वाले समय में गरीबी का प्रतिशत और भी ज्यादा बढ़ जाएगा। इसको लेकर सीधी जिले के प्रमुद्ध लोगों में काफी चिंता देखी जा रही है। गरीबी एवं अति गरीबी से पीडि़त 85 प्रतिशत परिवार किसी तरह अपने परिवार का भरण-पोषण करने तक ही सीमित हैं। ऐेसे परिवार चाह कर भी अपनें परिवार की खुशहाली के लिए कोई बड़ा कार्य नहीं कर पा रहे हैं।

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जिले में जिस रफ्तार से जनसंख्या बढ़ रही है उसके अनुसार संसाधन नहीं बढ़ रहे हैं। सबसे बड़ी जरूरत रोटी, कपड़ा और मकान की है। इसके लिए परिवार अपना जीवन जिले में रहते हुए खपा देता है लेकिन उसके हांथ कुछ नहीं आता है। परिवार के भरण-पोषण के लिए सबसे बड़ी जरूरत भोजन है। इसके व्यवस्था में ही जिले की अधिकांश आबादी परेशान देखी जाती है। परिवार के भरण-पोषण एवं आवश्यक जरूरतों के लिए लोग भटकते रहते हैं। भोजन के बाद परिवार के सदस्यां को ठीक-ठाक कपड़ा पहनने के लिए मिले इसकी व्यवस्था भी काफी कम परिवार बना पाते हैं। मकान बनानें के लिए लाखों की पूंजी एवं भूमि की जरूरत पड़ती है। जिले में काफी संख्या में ऐसे परिवार हैं जिनके पास स्वयं का घर बनानें के लिए भूमि उपलब्ध नहीं है। ऐसे परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी शासकीय भूमि या फिर वन भूमियों में आबाद हैं। कुछ परिवारों को शासन की योजना का लाभ मिल जाने पर भूमि का पट्टा मिल चुका है तो काफी संख्या में ऐसे भी परिवार हैं जो कि लंबे समय से आवेदन दे रहे हैं लेकिन उन्हें मकान बनानें के लिए भूमि का पट्टा नहीं मिल रहा है। सीधी जिले में गरीब एवं अति गरीब परिवारों के समक्ष जो भटकाव बना हुआ है वह खत्म कब होगा इसको लेकर पूरी तरह से अनिश्चितता कायम है। यह अवश्य है कि जिले के अधिकांश लोग यही मानते हैं कि यदि जिले में कोई बड़ा उद्योग, धंधा स्थापित हो जाए तो बेरोजगारों की बढ़ती फौज को काम की तलश में भटकने की मजबूरी खत्म हो जाए। स्थिति यह है कि आज पढ़े, लिखे लोगों से ज्यादा अशिक्षित श्रमिक वर्ग की आमदनी है। इनके मुकाबले पढ़े, लिखे लोगों को काम करने के बाद भी काफी कम पारिश्रमिक मिलती है।

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nशिक्षा एवं स्वास्थ्य में बढ़ रहा ज्यादा खर्च
nजिले के अधिकांश परिवार अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए अपनी आमदनी से ज्यादा खर्च कर रहे हैं। गरीब परिवार भी यह चाहता है कि उनके पुत्र एवं पुत्री ज्यादा से ज्यादा शिक्षा प्राप्त कर सकें। सीधी जिले में स्नातक एवं स्नातकोत्तर तक की शिक्षा प्राप्त करने वाले युवाओं की संख्या हर वर्ष बढ़ रही है। उसके मुकाबले एक प्रतिशत लोगों को भी नौकरी का अवसर उपलब्ध नहीं हो रहा है। शासकीय क्षेत्र में तो नौकरी नहीं मिल रही है। वहीं अशासकीय क्षेत्रों में भी नौकरी के अवसर उपलब्ध नहीं हो रहे हैं। स्नातक एवं स्नातकोत्तर की पढ़ाई करनें के बाद यहां के युवाओं को 5 हजार रुपए की नौकरी पाने के लिए भी प्रायवेट स्तर पर भटकने की मजबूरी बनी हुई है। जानकारों का कहना है कि शासन द्वारा ऐसी व्यवस्था प्रदेश में लागू नहीं की गई है कि निजी क्षेत्र में कार्य करने वाले लोगों को शासन से निर्धारित दर पर आशानी से मजदूरी राशि मिल सके। निजी क्षेत्र में पढ़े-लिखे युवाओं का काफी शोषण हो रहा है और पारिश्रमिक भी काफी कम मिलने से वह घर परिवार चलाने में भी कर्ज का बोझ लादने को मजबूर हैं। बढ़ती जनसंख्या के अनुसार शासन को प्रति व्यक्ति आय बढ़ सके इसके लिए गंभीरता से प्रयास करने की जरूरत है। यदि सरकार प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने में लाचार है तो ऐसे लोगों के लिए हर महीने बेरोजगारी भत्ता प्राथमिकता के साथ उपलब्ध करानें के लिए पहल करनी चाहिए। जिससे लोग अपने परिवार का भरण-पोषण आशानी से कर सकें।

     
   
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